गर्द-बाद-ए-शरार हैं हम लोग

गर्द-बाद-ए-शरार हैं हम लोग

किस के जी का ग़ुबार हैं हम लोग

आ कि हासिल हो नाज़-ए-इज़्ज़-ओ-शरफ़

आ तिरी रहगुज़ार हैं हम लोग

बे-कजावा है नाक़ा-ए-दुनिया

और ज़ख़्मी सवार हैं हम लोग

जब्र के बाब में फ़रोज़ाँ हैं

हासिल-ए-इख़्तियार हैं हम लोग

फिर बदन में थकन की गर्द लिए

फिर लब-ए-जू-ए-बार हैं हम लोग

बाद-ए-सरसर कभी तो बाद-ए-सुमूम

मौजा-ए-ख़ाकसार हैं हम लोग

चश्म-ए-नर्गिस मगर अलील भी है

किस लिए बे-कनार हैं हम लोग

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