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तुझ को अपना के भी अपना नहीं होने देना - आमिर अमीर कविता - Darsaal

तुझ को अपना के भी अपना नहीं होने देना

तुझ को अपना के भी अपना नहीं होने देना

ज़ख़्म-ए-दिल को कभी अच्छा नहीं होने देना

मैं तो दुश्मन को भी मुश्किल में कुमक भेजूँगा

इतनी जल्दी उसे पसपा नहीं होने देना

तू ने मेरा नहीं होना है तो फिर याद रहे

मैं ने तुझ को भी किसी का नहीं होने देना

तू ने कितनों को नचाया है इशारों पे मगर

मैं ने ऐ इश्क़! ये मुजरा नहीं होने देना

उस ने खाई है क़सम फिर से मुझे भूलने की

मैं ने इस बार भी ऐसा नहीं होने देना

ज़िंदगी में तो तुझे छोड़ ही देता लेकिन

फिर ये सोचा तुझे बेवा नहीं होने देना

मज़हब-ए-इश्क़ कोई छोड़ मरे तो मैं ने

ऐसे मुर्तद का जनाज़ा नहीं होने देना

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