कुछ तो एहसास-ए-मोहब्बत से हुईं नम आँखें
कुछ तिरी याद के बादल भी भिगो जाते हैं
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ज़िंदगी अपना सफ़र तय तो करेगी लेकिन
कम्बख़्त दिल ने इश्क़ को वहशत बना दिया
खींच लाया तुझे एहसास-ए-तहफ़्फ़ुज़ मुझ तक
दो किनारों को मिलाया था फ़क़त लहरों ने
वही चर्चे वही क़िस्से मिली रुस्वाइयाँ हम को
सुब्ह-ए-रौशन को अंधेरों से भरी शाम न दे
तुझी से गुफ़्तुगू हर दम तिरी ही जुस्तुजू हर दम
न तो ख़ौफ़ रोज़-ए-जज़ा का हो वही इश्क़ है
न हों ख़्वाहिशें न गिला कोई न जफ़ा कोई
कौन था मेरे अलावा उस का
रक़ीब-ए-जाँ नज़र का नूर हो जाए तो क्या कीजे