कोई तदबीर न तक़दीर से लेना-देना
बस यूँही फ़ैसले जो होने हैं हो जाते हैं
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रक़ीब-ए-जाँ नज़र का नूर हो जाए तो क्या कीजे
बन गए दिल के फ़साने क्या क्या
न हों ख़्वाहिशें न गिला कोई न जफ़ा कोई
कौन था मेरे अलावा उस का
वफ़ा की शान वो लेकिन कभी मिरे न हुए
दो किनारों को मिलाया था फ़क़त लहरों ने
तुझी से गुफ़्तुगू हर दम तिरी ही जुस्तुजू हर दम
हम ने हज़ार फ़ासले जी कर तमाम शब
शिद्दत-ए-शौक़ से अफ़्साने तो हो जाते हैं
खींच लाया तुझे एहसास-ए-तहफ़्फ़ुज़ मुझ तक
सुब्ह-ए-रौशन को अंधेरों से भरी शाम न दे
ज़िंदगी अपना सफ़र तय तो करेगी लेकिन