किया करते हैं दिलदारी दिल-आज़ारी नहीं करते
किया करते हैं दिलदारी दिल-आज़ारी नहीं करते
हँसाने के लिए हम बात बाज़ारी नहीं करते
मज़ाह-ओ-तंज़ में मलहूज़ रखते हैं मतानत को
कभी मजरूह हम करते नहीं लफ़्ज़ों की हुर्मत को
जो कम शादाब चेहरे हैं उन्हें शादाब करते हैं
जो कम-सिन हैं बहुत झुक कर उन्हें आदाब करते हैं
उजाले को उजाला रात को हम रात कहते हैं
सलीक़े से ब-अंदाज़-ए-दिगर हर बात कहते हैं
बढ़ा कर बात दुगुनी या कभी तिगुनी नहीं कहते
किसी कम-क़द हसीना को कभी ठिगनी नहीं कहते
किसी नाज़ुक बदन को हम कभी मोटी नहीं कहते
किसी मोटी से मोटी को डबल-रोटी नहीं कहते
जो मिस्गाइड करे उस को तो मिस्गाइड नहीं करते
भलाई को किसी भी तौर सब साइड नहीं करते
बनाते हैं हर इक माहौल को हम पुर-फ़ज़ा यारो
क़बा-ए-गुल को छूते हैं ब-अंदाज़-ए-सबा यारो
किसी मिस से जो नादानी में कुछ मिस्टेक हो जाए
दुआ करते हैं नादानी भी फाल-ए-नेक हो जाए
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