इक छोड़ो हो इक और जो मिस मात करो हो
इक छोड़ो हो इक और जो मिस मात करो हो
हर साल ये क्या क़िबला-ए-हाजात करो हो
समझो हो कहाँ औरों को तुम अपने बराबर
बस मुँह से मुसावात मुसावात करो हो
क्या हुस्न की दौलत भी कभी बाँटो हो साहिब
सुनने में तो आया है कि ख़ैरात करो हो
मिल जाऊँ तो करते हो न मिलने की शिकायत
घर आऊँ तो ख़ातिर न मुदारात करो हो
हम ज़ात-ए-शरीफ़ आए हैं इस दर पे ये सुन कर
तुम हँस के शरीफ़ों से मुलाक़ात करो हो
उठ्ठे कहाँ बैठे कहाँ कब आए गए कब
बेगम की तरह तुम भी हिसाबात करो हो
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