Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_2c79ec59ccdccc43375e3c631653f77e, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ज़बाँ है मगर बे-ज़बानों में है - अमीर क़ज़लबाश कविता - Darsaal

ज़बाँ है मगर बे-ज़बानों में है

ज़बाँ है मगर बे-ज़बानों में है

नसीहत कोई उस के कानों में है

चलो साहिलों की तरफ़ रुख़ करें

अभी तो हवा बादबानों में है

ज़मीं पर हो अपनी हिफ़ाज़त करो

ख़ुदा तो मियाँ आसमानों में है

न जाने ये एहसास क्यूँ है मुझे

वो अब तक मिरे पासबानों में है

सजा तो लिए हम ने दीवार-ओ-दर

उदासी अभी तक मकानों में है

हवा रुख़ बदलती रहे भी तो क्या

परिंदा तो अपनी उड़ानों में है

(831) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Zaban Hai Magar Be-zabanon Mein Hai In Hindi By Famous Poet Ameer Qazalbash. Zaban Hai Magar Be-zabanon Mein Hai is written by Ameer Qazalbash. Complete Poem Zaban Hai Magar Be-zabanon Mein Hai in Hindi by Ameer Qazalbash. Download free Zaban Hai Magar Be-zabanon Mein Hai Poem for Youth in PDF. Zaban Hai Magar Be-zabanon Mein Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Zaban Hai Magar Be-zabanon Mein Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.