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इन सराबों से गुज़रने दे मुझे - अमीर क़ज़लबाश कविता - Darsaal

इन सराबों से गुज़रने दे मुझे

इन सराबों से गुज़रने दे मुझे

उँगलियाँ रेत में भरने दे मुझे

जिस नदी पार न उतरा कोई

उस नदी पार उतरने दे मुझे

कोई सय्याह मुझे ढूँढेगा

इक जज़ीरा हूँ उभरने दे मुझे

यूँ न बे-ज़ार हो इतना ख़ुद से

तेरा चेहरा हूँ सँवरने दे मुझे

देख बे-मंज़री-ए-मंज़र को

कम से कम रंग तो भरने दे मुझे

रू-ब-रू मुझ को कभी ला मेरे

अपने ही आप से डरने दे मुझे

शुक्र कीजे कि शिकायत कीजे

वो न जीने दे न मरने दे मुझे

राह मत रोक कि मुश्किल है बहुत

बहता पानी हूँ गुज़रने दे मुझे

एक ऐसा भी शजर हो जो 'अमीर'

अपने साए में ठहरने दे मुझे

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