अगर मस्जिद से वाइज़ आ रहे हैं
अगर मस्जिद से वाइज़ आ रहे हैं
क़दम क्यूँ डगमगाए जा रहे हैं
किसी की बेवफ़ाई का गिला था
न जाने आप क्यूँ शरमा रहे हैं
ये दीवाना किसी की क्या सुनेगा
ये दीवाने किसे समझा रहे हैं
मनाने के लिए जश्न-ए-बहाराँ
नशेमन भी जलाए जा रहे हैं
'अमीर' उन को है फ़िक्र-ए-चश्म-ए-नम भी
वो दामन भी बचाए जा रहे हैं
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