Love Poetry of Ameer Minai (page 1)
नाम | अमीर मीनाई |
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अंग्रेज़ी नाम | Ameer Minai |
जन्म की तारीख | 1829 |
मौत की तिथि | 1900 |
उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो
तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा
किस ढिटाई से वो दिल छीन के कहते हैं 'अमीर'
ख़ुश्क सेरों तन-ए-शाएर का लहू होता है
कौन सी जा है जहाँ जल्वा-ए-माशूक़ नहीं
काबा-ए-रुख़ की तरफ़ पढ़नी है आँखों से नमाज़
जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
इन शोख़ हसीनों पे जो माइल नहीं होता
हिलाल ओ बद्र दोनों में 'अमीर' उन की तजल्ली है
हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
है जवानी ख़ुद जवानी का सिंगार
देख ले बुलबुल ओ परवाना की बेताबी को
बोसा लिया जो उस लब-ए-शीरीं का मर गए
आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब
आहों से सोज़-ए-इश्क़ मिटाया न जाएगा
आफ़त तो है वो नाज़ भी अंदाज़ भी लेकिन
या-रब शब-ए-विसाल ये कैसा गजर बजा
वस्ल की शब भी ख़फ़ा वो बुत-ए-मग़रूर रहा
वादा-ए-वस्ल और वो कुछ बात है
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है
शमशीर है सिनाँ है किसे दूँ किसे न दूँ
सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
साफ़ कहते हो मगर कुछ नहीं खुलता कहना
क़िबला-ए-दिल काबा-ए-जाँ और है
पूछा न जाएगा जो वतन से निकल गया
पिला साक़िया अर्ग़वानी शराब
न बेवफ़ाई का डर था न ग़म जुदाई का
मुझ मस्त को मय की बू बहुत है