ज़ीस्त का ए'तिबार क्या है 'अमीर'
आदमी बुलबुला है पानी का
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क़रीब है यारो रोज़-ए-महशर छुपेगा कुश्तों का ख़ून क्यूँकर
चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़
फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया
फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा
ख़ुशामद ऐ दिल-ए-बेताब इस तस्वीर की कब तक
शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो
काबा-ए-रुख़ की तरफ़ पढ़नी है आँखों से नमाज़
हम-सर-ए-ज़ुल्फ़ क़द-ए-हूर-ए-शमाइल ठहरा
नब्ज़-ए-बीमार जो ऐ रश्क-ए-मसीहा देखी
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
आशिक़ का बाँकपन न गया बाद-ए-मर्ग भी
पुतलियाँ तक भी तो फिर जाती हैं देखो दम-ए-नज़अ