यार पहलू में है तन्हाई है कह दो निकले
आज क्यूँ दिल में छुपी बैठी है हसरत मेरी
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फ़ुर्क़त में मुँह लपेटे मैं इस तरह पड़ा हूँ
फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया
इन शोख़ हसीनों पे जो माइल नहीं होता
ख़ून-ए-नाहक़ कहीं छुपता है छुपाए से 'अमीर'
आए बुत-ख़ाने से काबे को तो क्या भर पाया
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ख़ुदा ने नेक सूरत दी तो सीखो नेक बातें भी
वस्ल में ख़ाली हुई ग़ैर से महफ़िल तो क्या
हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
सारी दुनिया के हैं वो मेरे सिवा
मुश्किल बहुत पड़ेगी बराबर की चोट है
सीधी निगाह में तिरी हैं तीर के ख़्वास