वो और वा'दा वस्ल का क़ासिद नहीं नहीं
सच सच बता ये लफ़्ज़ उन्हीं की ज़बाँ के हैं
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न बेवफ़ाई का डर था न ग़म जुदाई का
आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब
कौन सी जा है जहाँ जल्वा-ए-माशूक़ नहीं
दिल जो सीने में ज़ार सा है कुछ
शाख़ों से बर्ग-ए-गुल नहीं झड़ते हैं बाग़ में
मानी हैं मैं ने सैकड़ों बातें तमाम उम्र
तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा
अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
वाए क़िस्मत वो भी कहते हैं बुरा
जो चाहिए सो माँगिये अल्लाह से 'अमीर'
हुआ जो पैवंद मैं ज़मीं का तो दिल हुआ शाद मुझ हज़ीं का
हिलाल ओ बद्र दोनों में 'अमीर' उन की तजल्ली है