वस्ल हो जाए यहीं हश्र में क्या रक्खा है
आज की बात को क्यूँ कल पे उठा रक्खा है
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पहले तो मुझे कहा निकालो
समझता हूँ सबब काफ़िर तिरे आँसू निकलने का
आया न एक बार अयादत को तू मसीह
क्या रोके क़ज़ा के वार तावीज़
अभी आए अभी जाते हो जल्दी क्या है दम ले लो
चाँद सा चेहरा नूर की चितवन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
माँग लूँ तुझ से तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है
मिला कर ख़ाक में भी हाए शर्म उन की नहीं जाती
शाख़ों से बर्ग-ए-गुल नहीं झड़ते हैं बाग़ में
हिलाल ओ बद्र दोनों में 'अमीर' उन की तजल्ली है
जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा