तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है
सीना किस का है मिरी जान जिगर किस का है
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अपनी महफ़िल से अबस हम को उठाते हैं हुज़ूर
यार पहलू में है तन्हाई है कह दो निकले
शाएर को मस्त करती है तारीफ़-ए-शेर 'अमीर'
या-रब शब-ए-विसाल ये कैसा गजर बजा
सौ शेर एक जलसे में कहते थे हम 'अमीर'
कहा जो मैं ने कि यूसुफ़ को ये हिजाब न था
मुश्किल बहुत पड़ेगी बराबर की चोट है
इन शोख़ हसीनों पे जो माइल नहीं होता
हम जो पहुँचे तो लब-ए-गोर से आई ये सदा
दिल को तर्ज़-ए-निगह-ए-यार जताते आए
मिरे बस में या तो या-रब वो सितम-शिआर होता
अभी आए अभी जाते हो जल्दी क्या है दम ले लो