शाएर को मस्त करती है तारीफ़-ए-शेर 'अमीर'
सौ बोतलों का नश्शा है इस वाह वाह में
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करता मैं दर्दमंद तबीबों से क्या रुजूअ
तरफ़-ए-काबा न जा हज के लिए नादाँ है
ख़ुदा ने नेक सूरत दी तो सीखो नेक बातें भी
ये कहूँगा ये कहूँगा ये अभी कहते हो
सारी दुनिया के हैं वो मेरे सिवा
या-रब शब-ए-विसाल ये कैसा गजर बजा
हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
वस्ल में ख़ाली हुई ग़ैर से महफ़िल तो क्या
तुझ से माँगूँ मैं तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
नावक-ए-नाज़ से मुश्किल है बचाना दिल का
तवक़्क़ो' है धोके में आ कर वह पढ़ लें
ऐ ज़ब्त देख इश्क़ की उन को ख़बर न हो