हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं
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पुतलियाँ तक भी तो फिर जाती हैं देखो दम-ए-नज़अ
शौक़ कहता है पहुँच जाऊँ मैं अब काबे में जल्द
सब हसीं हैं ज़ाहिदों को ना-पसंद
पहले तो मुझे कहा निकालो
समझता हूँ सबब काफ़िर तिरे आँसू निकलने का
गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'
ख़ुश्क सेरों तन-ए-शाएर का लहू होता है
ये भी इक बात है अदावत की
तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर
फ़ुर्क़त में मुँह लपेटे मैं इस तरह पड़ा हूँ
वादा-ए-वस्ल और वो कुछ बात है
ज़ब्त देखो उधर निगाह न की