Coupletss of Ameer Minai (page 2)

Coupletss of Ameer Minai (page 2)
नामअमीर मीनाई
अंग्रेज़ी नामAmeer Minai
जन्म की तारीख1829
मौत की तिथि1900

सौ शेर एक जलसे में कहते थे हम 'अमीर'

सारी दुनिया के हैं वो मेरे सिवा

सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

सारा पर्दा है दुई का जो ये पर्दा उठ जाए

समझता हूँ सबब काफ़िर तिरे आँसू निकलने का

सादा समझो न इन्हें रहने दो दीवाँ में 'अमीर'

सब हसीं हैं ज़ाहिदों को ना-पसंद

रोज़-ओ-शब याँ एक सी है रौशनी

रास्ते और तवाज़ो' में है रब्त-ए-क़ल्बी

रहा ख़्वाब में उन से शब भर विसाल

क़रीब है यारो रोज़-ए-महशर छुपेगा कुश्तों का ख़ून क्यूँकर

पुतलियाँ तक भी तो फिर जाती हैं देखो दम-ए-नज़अ

पूछा न जाएगा जो वतन से निकल गया

फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया

पहलू में मेरे दिल को न ऐ दर्द कर तलाश

पहले तो मुझे कहा निकालो

नावक-ए-नाज़ से मुश्किल है बचाना दिल का

नब्ज़-ए-बीमार जो ऐ रश्क-ए-मसीहा देखी

न वाइज़ हज्व कर एक दिन दुनिया से जाना है

मुश्किल बहुत पड़ेगी बराबर की चोट है

मुद्दत में शाम-ए-वस्ल हुई है मुझे नसीब

मुद्दत में शाम-ए-वस्ल हुई है मुझे नसीब

मिसी छूटी हुई सूखे हुए होंट

मिली है दुख़्तर-ए-रज़ लड़-झगड़ के क़ाज़ी से

मिला कर ख़ाक में भी हाए शर्म उन की नहीं जाती

मिरा ख़त उस ने पढ़ा पढ़ के नामा-बर से कहा

मौक़ूफ़ जुर्म ही पे करम का ज़ुहूर था

मस्जिद में बुलाते हैं हमें ज़ाहिद-ए-ना-फ़हम

मानी हैं मैं ने सैकड़ों बातें तमाम उम्र

माँग लूँ तुझ से तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए

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