अमीर मीनाई कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अमीर मीनाई
नाम | अमीर मीनाई |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Ameer Minai |
जन्म की तारीख | 1829 |
मौत की तिथि | 1900 |
ज़ीस्त का ए'तिबार क्या है 'अमीर'
ज़ाहिद उमीद-ए-रहमत-ए-हक़ और हज्व-ए-मय
ज़ब्त देखो उधर निगाह न की
ये कहूँगा ये कहूँगा ये अभी कहते हो
ये भी इक बात है अदावत की
यार पहलू में है तन्हाई है कह दो निकले
वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं
वो और वा'दा वस्ल का क़ासिद नहीं नहीं
वस्ल में ख़ाली हुई ग़ैर से महफ़िल तो क्या
वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
वस्ल हो जाए यहीं हश्र में क्या रक्खा है
वही रह जाते हैं ज़बानों पर
वाए क़िस्मत वो भी कहते हैं बुरा
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो
तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा
तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ का क़िस्सा न पूछिए
तुझ से माँगूँ मैं तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है
तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर
तेरी मस्जिद में वाइज़ ख़ास हैं औक़ात रहमत के
तवक़्क़ो' है धोके में आ कर वह पढ़ लें
तरफ़-ए-काबा न जा हज के लिए नादाँ है
सीधी निगाह में तिरी हैं तीर के ख़्वास
शौक़ कहता है पहुँच जाऊँ मैं अब काबे में जल्द
शाख़ों से बर्ग-ए-गुल नहीं झड़ते हैं बाग़ में
शैख़ कहता है बरहमन को बरहमन उस को सख़्त
शाएर को मस्त करती है तारीफ़-ए-शेर 'अमीर'
शब-ए-विसाल बहुत कम है आसमाँ से कहो
शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो