गुम-शुदा
मैं इस दुनिया के मेले में
खिलौनों कि दुकानों पर सजे एक इक खिलौने को बड़ी हसरत से तकता जा रहा हूँ
उस इक बच्चे की सूरत जिस को ये मालूम तक होता नहीं वो खो गया है
वो जिन के साथ आया था वो उस को ढूँडते फिरते हैं
लेकिन वो तो इस मेले में चलता जा रहा है
बिना सोचे कि उस के चलते जाने का भला अंजाम क्या होगा
बिना जाने कि जब ढल जाएगा दिन और होगी शाम
क्या होगा
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