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उबाल - अमीक़ हनफ़ी कविता - Darsaal

उबाल

ये हाँडी उबलने लगी

ये मिट्टी की हाँडी उबलने लगी है

ये मिट्टी की दीवानी हाँडी उबलने लगी है

हज़ारों बरस से मिरी आत्मा ऊँघ में फँस गई थी

जब इंसान दो पत्थरों को रगड़ कर कुहन-साल सूरज की सुर्ख़ आत्मा को बुलाने लगा था

मगर तेज़ आँच और बहुत तेज़ बू ने झिंझोड़ा तो अब आँख फाड़े हुए

दम-ब-ख़ुद है

उबलने लगीं सब्ज़ियाँ फूल फल गोश्त दालें अनाज

अभी शोरबे के खदकने की आवाज़ छाई हुई थी

अभी साँप-छतरी लगाए हुए भाप नीले ख़लाओं की जानिब रवाँ है

वो जिस की ज़ियाफ़त की तय्यारियाँ थीं कहाँ है

मिरी आत्मा जाग कर चीख़ती है

ये हाँडी उबलने लगी है

ये मिट्टी की हाँडी उबलने लगी है

ये मिट्टी की दीवानी हाँडी उबलने लगी है

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Ubaal In Hindi By Famous Poet Ameeq Hanafi. Ubaal is written by Ameeq Hanafi. Complete Poem Ubaal in Hindi by Ameeq Hanafi. Download free Ubaal Poem for Youth in PDF. Ubaal is a Poem on Inspiration for young students. Share Ubaal with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.