ला-परवाही
पलकों पर सपनों की किरची बची रह गई
बस इतनी सी ला-परवाही क्या होनी थी
इंद्रासन तक डोल उठा
फरमानों के ढेर लग गए
फाँसी सूली जनम-क़ैद के चर्चे घर घर होने लगे
तख़्त से तख़्ते तक का नक़्शा फिर से देखा जाने लगा
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पलकों पर सपनों की किरची बची रह गई
बस इतनी सी ला-परवाही क्या होनी थी
इंद्रासन तक डोल उठा
फरमानों के ढेर लग गए
फाँसी सूली जनम-क़ैद के चर्चे घर घर होने लगे
तख़्त से तख़्ते तक का नक़्शा फिर से देखा जाने लगा
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