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खेती - अमीक़ हनफ़ी कविता - Darsaal

खेती

वक़्त की खेती हैं हम

वक़्त बोता है उगाता पालता है

और बढ़ने के मवाक़े भी हमें देता है वक़्त

सब्ज़ को ज़र्रीं बताने की इजाज़त मर्हमत करता है और

नाचने देता है बाद-ए-शोख़ की मौजों के साथ

झूमने देता है सूरज की किरन की हम-दमी में

चाँदनी पी कर हमें ब-दस्त पाता है तो ख़ुश होता है वक़्त

फूलने फलने की तदबीरें बताता है हमें

हाँ मगर अंजाम कार

काट लेना है हमें

हम बिल-आख़िर उस के नग़्मे

हम बिल-आख़िर उस की फ़स्ल

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