हाए शिद्दत की कमी
मैं जहाँ पैदा हुआ
परवरिश पाया बढ़ा
और जिस जा आज हूँ
उन सभी जगहों का मौसम
मो'तदिल फ़य्याज़ मुख़्लिस मेहरबाँ
जो तपाने या जमाने के अमल से ना-बलद
ख़ाक के ज़र्रों को भोभल बनते मैं ने
आज तक देखा नहीं
और दरियाओं को राह-ए-बर्फ़ में तब्दील होते भी न देखा
तजरबे मिट्टी के लोंदे गोल चिकने और सपाट
नोक है उन में न धार
और न चुभने की सकत
एक आदत इक रिवायत इक रिवाज
क्या मिरे बाहर का मौसम और क्या मेरा मिज़ाज!
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