दुआ की शाख़ पर
जब से आई है नज़र मुझ को दुआ की शाख़ पर
कोंपल असर की
मेरी पलकों को सजाया जा रहा है
झील पत्थर को बनाया जा रहा है
रेत से आईना ढाला जा रहा है
संग-ए-ज़ौक़-ए-दीद से
इक नगीना सा तराशा जा रहा है
बे-सुतूँ पर
एक पारे की लकीर
इक मुसलसल शब के ब'अद
सुब्ह-ए-नौ की जू-ए-शीर
आया-''यमस्का'' की तफ़्सीर
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