Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_5faa02c23eab6667187e7a64dbf3385b, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
कहने को शम-ए-बज़्म-ए-ज़मान-ओ-मकाँ हूँ मैं - अमीक़ हनफ़ी कविता - Darsaal

कहने को शम-ए-बज़्म-ए-ज़मान-ओ-मकाँ हूँ मैं

कहने को शम-ए-बज़्म-ए-ज़मान-ओ-मकाँ हूँ मैं

सोचो तो सिर्फ़ कुश्ता-ए-दौर-ए-जहाँ हूँ मैं

आता हूँ मैं ज़माने की आँखों में रात दिन

लेकिन ख़ुद अपनी नज़रों से अब तक निहाँ हूँ मैं

जाता नहीं किनारों से आगे किसी का ध्यान

कब से पुकारता हूँ यहाँ हूँ यहाँ हूँ मैं

इक डूबते वजूद की मैं ही पुकार हूँ

और आप ही वजूद का अंधा कुआँ हूँ मैं

सिगरेट जिसे सुलगता हुआ कोई छोड़ दे

उस का धुआँ हूँ और परेशाँ धुआँ हूँ मैं

(832) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kahne Ko Sham-e-bazm-e-zaman-o-makan Hun Main In Hindi By Famous Poet Ameeq Hanafi. Kahne Ko Sham-e-bazm-e-zaman-o-makan Hun Main is written by Ameeq Hanafi. Complete Poem Kahne Ko Sham-e-bazm-e-zaman-o-makan Hun Main in Hindi by Ameeq Hanafi. Download free Kahne Ko Sham-e-bazm-e-zaman-o-makan Hun Main Poem for Youth in PDF. Kahne Ko Sham-e-bazm-e-zaman-o-makan Hun Main is a Poem on Inspiration for young students. Share Kahne Ko Sham-e-bazm-e-zaman-o-makan Hun Main with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.