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बीन हवा के हाथों में है लहरे जादू वाले हैं - अमीक़ हनफ़ी कविता - Darsaal

बीन हवा के हाथों में है लहरे जादू वाले हैं

बीन हवा के हाथों में है लहरे जादू वाले हैं

चंदन से चिकने शानों पर मचल उठे दो काले हैं

जंगल की या बाज़ारों की धूल उड़ी है स्वागत को

हम ने घर के बाहर जब भी अपने पाँव निकाले हैं

कैसा ज़माना आया है ये उल्टी रीत है उल्टी बात

फूलों को काँटे डसते हैं जो इन के रखवाले हैं

घर के दुखड़े शहर के ग़म और देस बिदेस की चिंताएँ

इन में कुछ आवारा कुत्ते हैं कुछ हम ने पाले हैं

एक उसी को देख न पाए वर्ना शहर की सड़कों पर

अच्छी अच्छी पोशाकें हैं अच्छी सूरत वाले हैं

रात में दिल को क्या सूझी है उस के गाँव को चलने की

जंगल में चीते रहते हैं राह में नद्दी नाले हैं

दोनों का मिलना मुश्किल है दोनों हैं मजबूर बहुत

उस के पाँव में मेहंदी लगी है मेरे पाँव में छाले हैं

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