नुमूद-ए-रंग-ओ-बू ने मार डाला
उसी की आरज़ू ने मार डाला
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लाले पड़े हैं जान के जीने का एहतिमाम कर
यूँ दिल है सर-ब-सज्दा किसी के हुज़ूर में
रस्ते की ऊँच नीच से वाक़िफ़ तो हूँ 'अमीं'
अफ़्साना-ए-हयात को दोहरा रहा हूँ मैं
तुझ को तिरी ही आँख से देख रही है काएनात