उस ने जो ग़म किए हवाले थे
उस ने जो ग़म किए हवाले थे
हम ने इक उम्र वो सँभाले थे
सेहन-ए-दिल में तुम्हारे सब वा'दे
मैं ने बच्चों की तरह पाले थे
आँख से ख़ुद-ब-ख़ुद निकल आए
अश्क हम ने कहाँ निकाले थे
इक ख़ुशी ऐसे मुस्कुराई थी
दर्द जैसे बिछड़ने वाले थे
अपने हाथों से जो बनाए बुत
एक दिन सारे तोड़ डाले थे
चार-सू वहशतों का डेरा था
जान के हर किसी को लाले थे
अजनबी बन के जो मिले थे 'अमीन'
लोग सब मेरे देखे-भाले थे
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