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दिल की हर बात तिरी मुझ को बता देती है - अम्बर जोशी कविता - Darsaal

दिल की हर बात तिरी मुझ को बता देती है

दिल की हर बात तिरी मुझ को बता देती है

तेरी ख़ामोश नज़र मुझ को सदा देती है

दूर रहना मुझे मंज़ूर नहीं है तुझ से

ज़िंदगी साथ तिरे मुझ को मज़ा देती है

अपनी कुटिया के अँधेरे को मिटाऊँ कैसे

वो मिरे दीप को ज़ुल्फ़ों से हवा देती है

तेरी ये ही तो अदा भाती है जानाँ मुझ को

जब नज़र सामने मेरे तू झुका देती है

इश्क़ का रोग लगा है कई बरसों से मुझे

किस लिए मुझ को ये फिर दुनिया दवा देती है

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