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हम सितारों में तिरा अक्स ना ढलने देंगे - अम्बरीन सलाहुद्दीन कविता - Darsaal

हम सितारों में तिरा अक्स ना ढलने देंगे

हम सितारों में तिरा अक्स ना ढलने देंगे

चाँद को शाम की दहलीज़ पे जलने देंगे

आज छू लेंगे कोई अर्श मिरे वहम-ओ-गुमाँ

ख़्वाब को नींद की आँखों में मचलने देंगे

हम भी देखेंगे कहाँ तक है रसाई अपनी

दिल को बहलाएँगे हम और ना सँभलने देंगे

शब की आग़ोश में फैलें न गुमाँ के साए

अब निगाहों में कोई ख़ौफ़ ना पलने देंगे

हो न जाए कहीं अंजाम से पहले अंजाम

इस कहानी को इसी तौर से चलने देंगे

अक्स-दर-अक्स मिलेंगे तुझे मंज़र मंज़र

तू जो चाहे भी कहाँ तुझ को बदलने देंगे

नक़्श-दर-नक़्श हुए जाएँगे बस ख़ाक यहीं

ख़ूद को इस दश्त-ए-गुमाँ से ना निकलने देंगे

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