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तुम्हारा जो सहारा हो गया है - अंबरीन हसीब अंबर कविता - Darsaal

तुम्हारा जो सहारा हो गया है

तुम्हारा जो सहारा हो गया है

भँवर भी अब किनारा हो गया है

मोहब्बत में भला क्या और होता

मिरा ये दिल तुम्हारा हो गया है

तुम्हारी याद से है वो चराग़ाँ

की आँसू भी सितारा हो गया है

अजब है मौसम-ए-बे-इख़्तियारी

की जब से वो हमारा हो गया

इक अन-जानी ख़ुशी के आसरे में

हमें हर ग़म गवारा हो गया है

हमें कब रास आ सकती थी दुनिया

ग़नीमत है गुज़ारा हो गया है

जिन्हें रहता था ज़ो'म-ए-दिल-फ़रोशी

उन्हें अब के ख़सारा हो गया है

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