इस आरज़ी दुनिया में हर बात अधूरी है
इस आरज़ी दुनिया में हर बात अधूरी है
हर जीत है ला-हासिल हर मात अधूरी है
कुछ देर की रिम-झिम को मा'लूम नहीं शायद
जल-थल न हो आँगन तो बरसात अधूरी है
क्या ख़ूब तमाशा है ये कार-गह-ए-हस्ती
हर जिस्म सलामत है हर ज़ात अधूरी है
महरूम-ए-तमाज़त दिन शब में भी नहीं ख़ुनकी
ये कैसा तअ'ल्लुक़ है हर बात अधूरी है
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