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मुझे ख़बर है मुझे यक़ीं है - अम्बर बहराईची कविता - Darsaal

मुझे ख़बर है मुझे यक़ीं है

मुझे ख़बर है

ये आबनूसी चट्टान जो दूब के सब्ज़ तख़्ते पे आ गिरी है

नई सुबुक नर्म पत्तियों का सिंघार पी कर

सुनहरे लम्हों की साँस में फाँस बन कर अटक गई है

मुझे यक़ीं है

कि मौसमों के तिलिस्म ये तीरगी उड़ा कर

इसी सुलगती चट्टान पर दूब की सब्ज़ ज़ुल्फ़ें बिखेर देंगे

मुझे यक़ीं है

मिरे कटे बाज़ुओं की ताक़त मिरी रगों से नहीं गई है

मिरे लहू के ये सुर्ख़ धारे नई हिकायत के पेश-रौ हैं

नई उमंगों नए उजालों नए शफ़क़-ज़ार के अमीं हैं

मुझे ख़बर है

कि ग़ोल चिड़ियों के लश्कर-ए-अबरहा की अब कुछ ख़बर न लेंगे

हमारी आँखों में रौशनी है मगर दिलों में सियाहियाँ हैं

उदासियों के घने धुवें में छुपी हुई कामरानियाँ हैं

मुझे यक़ीं है

कि इस फ़ज़ा में फ़राज़-ए-सहरा-ए-बे-अमाँ हैं

हज़ारों मासूम एड़ियाँ रगड़ चुके हैं रगड़ रहे हैं

उबल पड़ेगा ज़रूर कोई हयात-अफ़रोज़ आब-ए-शीरीं

सदाक़तों के बहार-ज़ारों को आख़िरश ताज़गी मिलेगी

मुझे ख़बर है मुझे यक़ीं है

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