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इम्बिसात-ए-अज़ली - अम्बर बहराईची कविता - Darsaal

इम्बिसात-ए-अज़ली

ऊँची नीची दूब पर लहराता हुआ काला नाग

झील के बाँहों से फूटता हुआ ज्वालामुखी

रंग-बिरंगे पंछी को पंजों में दबाए हुए बाज़

चट्टानों के पीछे मुर्दा जानवर की साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ ठिठुरी पर

भागते हुए सियाह चूहों की क़तार

चाँदनी रात में मछली पर झपटता हुआ ऊद-बिलाव

पतिंगे को पकड़ने के लिए लपकती हुई छिपकिली

सुरमई शाम के मल्गजे आकाश पर चढ़ती हुई आँधी

ये सारे मनाज़िर महा-नगर के एक कमरे में

वीडियो पर देख रहा हूँ

और

अहद-ए-हजर के अपने बुज़ुर्गों के फ़ितरी ख़ौफ़-ओ-तजस्सुस से भरे हुए

इम्बिसात को अपनी रगों से

सरगोशियाँ करते हुए पा रहा हूँ

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