Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_16896ec42f6ebad63ba2d988e5c33e45, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
शब ख़्वाब के जज़ीरों में हँस कर गुज़र गई - अम्बर बहराईची कविता - Darsaal

शब ख़्वाब के जज़ीरों में हँस कर गुज़र गई

शब ख़्वाब के जज़ीरों में हँस कर गुज़र गई

आँखों में वक़्त-ए-सुब्ह मगर धूल भर गई

पिछली रुतों में सारे शजर बारवर तो थे

अब के हर एक शाख़ मगर बे-समर गई

हम भी बढ़े थे वादी-ए-इज़हार में मगर

लहजे के इंतिशार से आवाज़ मर गई

तुझ फूल के हिसार में इक लुत्फ़ है अजब

छू कर जिसे हवा-ए-तरब-ए-मोतबर गई

दिल में अजब सा तीर तराज़ू है इन दिनों

हाँ ऐ निगाह-ए-नाज़ बता तू किधर गई

मक़्सद सला-ए-आम है फिर एहतियात क्यूँ

बे-रंग रौज़नों से जो ख़ुशबू गुज़र गई

उस के दयार में कई महताब भेज कर

वादी-ए-दिल में इक अमावस ठहर गई

अब के क़फ़स से दूर रही मौसमी हवा

आज़ाद ताएरों के परों को कतर गई

आँधी ने सिर्फ़ मुझ को मुसख़्ख़र नहीं किया

इक दश्त-ए-बे-दिली भी मिरे नाम कर गई

फिर चार-सू कसीफ़ धुएँ फैलने लगे

फिर शहर की निगाह तेरे क़स्र पर गई

अल्फ़ाज़ के तिलिस्म से 'अम्बर' को है शग़फ़

उस की हयात कैसे भला बे-बुनर गई

(828) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Shab KHwab Ke Jaziron Mein Hans Kar Guzar Gai In Hindi By Famous Poet Ambar Bahraichi. Shab KHwab Ke Jaziron Mein Hans Kar Guzar Gai is written by Ambar Bahraichi. Complete Poem Shab KHwab Ke Jaziron Mein Hans Kar Guzar Gai in Hindi by Ambar Bahraichi. Download free Shab KHwab Ke Jaziron Mein Hans Kar Guzar Gai Poem for Youth in PDF. Shab KHwab Ke Jaziron Mein Hans Kar Guzar Gai is a Poem on Inspiration for young students. Share Shab KHwab Ke Jaziron Mein Hans Kar Guzar Gai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.