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हर लम्हा सैराबी की अर्ज़ानी है - अम्बर बहराईची कविता - Darsaal

हर लम्हा सैराबी की अर्ज़ानी है

हर लम्हा सैराबी की अर्ज़ानी है

मिट्टी के कूज़े में ठंडा पानी है

चुपके चुपके रोता है तन्हाई में

वो जो शहर के हर मेले का बानी है

नदी किनारे शहर पनाहें बालों की

सावन की बौछारें हैं तुग़्यानी है

बाहर धूप समुंदर सुर्ख़ बगूले भी

अंदर हर ख़ुलिए में रुत बर्फ़ानी है

उस ने हर ज़र्रे को तिलिस्म-आबाद किया

हाथ हमारे लगी फ़क़त हैरानी है

मेरे दश्त को शायद उस ने देख लिया

धूप शबनमी हर-सू मंज़र धानी है

जाने क्या बरसा था रात चराग़ों से

भोर समय सूरज भी पानी पानी है

उस ने हर लम्हा ख़ुद को यूँ राम किया

हर पैकर में उस की राम-कहानी है

कच्चा घर आता है याद बहुत 'अम्बर'

कहने को शहरों में हर आसानी है

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