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किसे ख़याल कि इशरत के बाब कितने हैं - अमर सिंह फ़िगार कविता - Darsaal

किसे ख़याल कि इशरत के बाब कितने हैं

किसे ख़याल कि इशरत के बाब कितने हैं

ये प्यास कितनी है इस पर सराब कितने हैं

सफ़ीना घाट लगा देख हम ये भूल गए

कि वो सफ़ीने जो हैं ग़र्क़-ए-आब कितने हैं

तू ये न पूछ मिरे गाँव में हैं घर कितने

ये पूछ कौन से घर में अज़ाब कितने हैं

शरीक-ए-ग़म उसे कर तो लिया मगर सोचो

कि ज़िम्मेदार के ज़िम्मे जवाब कितने हैं

बड़ा ग़ुरूर है तुझ को अज़ीम लश्कर पर

कभी तो सोच तिरे हम-रिकाब कितने हैं

लचकती शाख़ पे काँटे भी कम नहीं होते

यही न देखिए किस पर गुलाब कितने हैं

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