कौन कहता है कि तुम सोचो नहीं

कौन कहता है कि तुम सोचो नहीं

सोच में इतने मगर डूबो नहीं

चुप हैं दीवारें तो क्या बहरी भी हैं

सब हमा-तन-गोश हैं बोलो नहीं

फूल तो क्या ख़ार भी मंज़ूर हैं

बे-रुख़ी से यूँ मगर फेंको नहीं

अपनी ही सूरत से तुम डर जाओगे

आइने में आज-कल झाँको नहीं

आज कुछ तुम को ज़ियादा हो गई

जाओ सो जाओ मियाँ उलझो नहीं

फ़ासला वो है कि बढ़ता जाएगा

लम्स के ख़्वाबों में यूँ भटको नहीं

मैं ज़मीं का दर्द हूँ यारो मुझे

आसमानों का पता पूछो नहीं

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