यारान-ए-तेज़-गाम ने महमिल को जा लिया
हम महव-ए-नाला-ए-जरस-ए-कारवां रहे
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माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
दिल से ख़याल-ए-दोस्त भुलाया न जाएगा
दरिया को अपनी मौज की तुग़्यानियों से काम
इश्क़ सुनते थे जिसे हम वो यही है शायद
तज़्किरा देहली-ए-मरहूम का ऐ दोस्त न छेड़
कब्क ओ क़ुमरी में है झगड़ा कि चमन किस का है
क़ैस हो कोहकन हो या 'हाली'
सख़्त मुश्किल है शेवा-ए-तस्लीम
कहना बड़ों का मानो
तौहीद
ख़ूबियाँ अपने में गो बे-इंतिहा पाते हैं हम