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कहना बड़ों का मानो - अल्ताफ़ हुसैन हाली कविता - Darsaal

कहना बड़ों का मानो

माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत

है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे नेमत

कड़वी नसीहतों में उन की भरा है अमृत

चाहो अगर बड़ाई तो कहना बड़ों का मानो

माँ बाप का अज़ीज़ो माना न जिस ने कहना

दुश्वार है जहाँ में इज़्ज़त से उस का रहना

डर है पड़े न सदमा ज़िल्लत का उस का सहना

चाहो अगर बड़ाई तो कहना बड़ों का मानो

तुम को ख़बर नहीं कुछ अपने भले-बुरे की

जितनी है उम्र छोटी उतनी है अक़्ल छोटी

है बेहतरी उसी में है जो बड़ों की मर्ज़ी

चाहो अगर बड़ाई तो कहना बड़ों का मानो

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