ये क्या कि फ़क़त अपनी ही तस्वीर बनाओ
ऐ नक़्श-गरो वुसअत-ए-फ़न कुछ तो दिखाओ
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जुनून-ए-शौक़-ए-मोहब्बत की आगही देना
सूरज पे जो थूकोगे तो क्या पाओगे
गुम-कर्दा-ए-मंज़िल हुई आवाज़-ए-दरा
गुलज़ार से क्या दश्त-ओ-दमन से गुज़रे
दश्त-दर-दश्त फिरा करता हूँ प्यासा हूँ मैं
गुम रहोगे कब तक अपनी ज़ात ही में
हैं ख़्वाब भी और ख़्वाब की ताबीरें भी
वो मसाफ़-ए-जीस्त में हर मोड़ पर तन्हा रहा
एहसास में बे-ताबीे-ए-जाँ रख दी है
हर सुब्ह के चेहरे को निखारा किस ने
किस वास्ते साहिल पे खड़े हो शश्दर