गुम रहोगे कब तक अपनी ज़ात ही में
ज़िंदगी से भी कभी आँखें मिलाओ
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हैं ख़्वाब भी और ख़्वाब की ताबीरें भी
मेरा ज़ौक़-ए-सज्दा-रेज़ी रास जिन को आ गया
दश्त-दर-दश्त फिरा करता हूँ प्यासा हूँ मैं
जब तजरबा की धूप में एहसास आया
ख़ुद-साख़्ता अफ़्साने सुनाते रहिए
जुनून-ए-शौक़-ए-मोहब्बत की आगही देना
सूरज पे जो थूकोगे तो क्या पाओगे
हर सुब्ह के चेहरे को निखारा किस ने
गुलज़ार से क्या दश्त-ओ-दमन से गुज़रे
ज़ख़्म दिल का ख़ूँ-चकाँ ऐसा न था
ये क्या कि फ़क़त अपनी ही तस्वीर बनाओ