एहसास में बे-ताबीे-ए-जाँ रख दी है
इज़हार में तासीर-ए-बयाँ रख दी है
ख़ल्लाक़-ए-मआ'नी ये करम है तेरा
अल्फ़ाज़ के मुँह में भी ज़बाँ रख दी है
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ख़ुद-साख़्ता अफ़्साने सुनाते रहिए
हर सुब्ह के चेहरे को निखारा किस ने
मेरा ज़ौक़-ए-सज्दा-रेज़ी रास जिन को आ गया
सूरज पे जो थूकोगे तो क्या पाओगे
जुनून-ए-शौक़-ए-मोहब्बत की आगही देना
गुलज़ार से क्या दश्त-ओ-दमन से गुज़रे
वो मसाफ़-ए-जीस्त में हर मोड़ पर तन्हा रहा
क्यूँ लग़्ज़िश-ए-पा मेरी मलामत का हदफ़ है
ये क्या कि फ़क़त अपनी ही तस्वीर बनाओ
गुम-कर्दा-ए-मंज़िल हुई आवाज़-ए-दरा
गुम रहोगे कब तक अपनी ज़ात ही में