फूल से ज़ख़्मों का अम्बार सँभाले हुए हैं
फूल से ज़ख़्मों का अम्बार सँभाले हुए हैं
ग़म की पूँजी मिरे अशआ'र सँभाले हुए हैं
हम से पूछो न शब-ओ-रोज़ का आलम सोचो
कैसे धड़कन की ये रफ़्तार सँभाले हुए हैं
घर भी बाज़ार की मानिंद रखे हैं अपने
वो जो बाज़ार का मेयार सँभाले हुए हैं
एक नॉवेल हैं कभी पढ़ तू हमें फ़ुर्सत में
तन-ए-तन्हा कई किरदार सँभाले हुए हैं
हम मोहब्बत के तले काँप रहे हैं ऐसे
जैसे दरकी हुई दीवार सँभाले हुए हैं
ज़ख़्म ले कर ये सभी अपने मैं जाता भी कहाँ
यूँ भी इजलास गुनाहगार सँभाले हुए हैं
(826) Peoples Rate This