धूप अब सर पे आ गई होगी
धूप अब सर पे आ गई होगी
कुछ नमी दश्त में बची होगी
दिल मुसलसल ही ज़ख़्म खाता है
इस की मिट्टी में कुछ कमी होगी
तू भी कुछ बद-हवास लौटा है
साँस रुक रुक के टूटती होगी
चाँद शब भर दहक रहा होगा
नींद शब भर पिघल रही होगी
घर की दीवार थी ही बोसीदा
अब की बारिश में गिर गई होगी
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