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आलोक मिश्रा Ghazal In Hindi - Best आलोक मिश्रा Ghazal Shayari & Poems - Darsaal

Ghazals of Alok Mishra

Ghazals of Alok Mishra
नामआलोक मिश्रा
अंग्रेज़ी नामAlok Mishra

ज़रा भी काम न आएगा मुस्कुराना क्या

वो बे-असर था मुसलसल दलील करते हुए

उन की आमद है गुल-फ़िशानी है

सवालों में ख़ुद भी है डूबी उदासी

साँस लेते हुए डर लगता है

साल ये कौन सा नया है मुझे

फूल से ज़ख़्मों का अम्बार सँभाले हुए हैं

फिर तिरी यादों की फुंकारों के बीच

मेरे ही आस-पास हो तुम भी

ख़ाक हो कर भी कब मिटूंगा मैं

जज़्ब कुछ तितलियों के पर में है

जाने किस बात से दुखा है बहुत

हम मुसलसल इक बयाँ देते हुए

इक अधूरी सी कहानी मैं सुनाता कैसे

दिल पर किसी की बात का ऐसा असर न था

धूप अब सर पे आ गई होगी

चीख़ की ओर मैं खिंचा जाऊँ

बुझती आँखों में तिरे ख़्वाब का बोसा रक्खा

बुझे लबों पे तबस्सुम के गुल सजाता हुआ

आँखों का पूरा शहर ही सैलाब कर गया

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