Khawab Poetry of Alok Mishra
नाम | आलोक मिश्रा |
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अंग्रेज़ी नाम | Alok Mishra |
जब से देखा है ख़्वाब में उस को
बुझती आँखों में तिरे ख़्वाब का बोसा रक्खा
वो बे-असर था मुसलसल दलील करते हुए
मेरे ही आस-पास हो तुम भी
जज़्ब कुछ तितलियों के पर में है
इक अधूरी सी कहानी मैं सुनाता कैसे
बुझती आँखों में तिरे ख़्वाब का बोसा रक्खा
बुझे लबों पे तबस्सुम के गुल सजाता हुआ