Sufi Poetry of Allama Iqbal
नाम | अल्लामा इक़बाल |
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अंग्रेज़ी नाम | Allama Iqbal |
जन्म की तारीख | 1877 |
मौत की तिथि | 1938 |
जन्म स्थान | Lahore |
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
तुलू-ए-इस्लाम
तस्वीर-ए-दर्द
तारिक़ की दुआ
साक़ी-नामा
रूह-ए-अर्ज़ी आदम का इस्तिक़बाल करती है
ला-इलाहा-इल्लल्लाह
जावेद के नाम
जवाब-ए-शिकवा
ये पयाम दे गई है मुझे बाद-ए-सुब्ह-गाही
या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन
वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ
तिरी निगाह फ़रोमाया हाथ है कोताह
ताज़ा फिर दानिश-ए-हाज़िर ने किया सेहर-ए-क़ादिम
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा
पूछ उस से कि मक़्बूल है फ़ितरत की गवाही
निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है
मीर-ए-सिपाह ना-सज़ा लश्करियाँ शिकस्ता सफ़
मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
ख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र-ओ-नाज़ नहीं
ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील
ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
हर चीज़ है महव-ए-ख़ुद-नुमाई
गर्म-ए-फ़ुग़ाँ है जरस उठ कि गया क़ाफ़िला
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर