Love Poetry of Allama Iqbal
नाम | अल्लामा इक़बाल |
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अंग्रेज़ी नाम | Allama Iqbal |
जन्म की तारीख | 1877 |
मौत की तिथि | 1938 |
जन्म स्थान | Lahore |
ज़िंदगानी की हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछ
यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम
वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-काएनात में रंग
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
सौ सौ उमीदें बंधती है इक इक निगाह पर
समुंदर से मिले प्यासे को शबनम
निगाह-ए-इश्क़ दिल-ए-ज़िंदा की तलाश में है
मिरे जुनूँ ने ज़माने को ख़ूब पहचाना
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
मैं जो सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
मैं जो सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
हुई न आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
अमल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
ज़ोहद और रिंदी